"सनातन धर्म के प्रसार के लिए एकजुट होने की जरूरत"- स्वामी आशुतोषानन्द गिरी
"भारतीय संस्कृति का संरक्षण हम सबका दायित्व"- महामंडलेश्वर आशुतोष गिरी
बेंगलुरु/बनारस। सोमवार को कैलाश मठ, काशी के महामंडलेश्वर एवं न्याय वेदांत दर्शनाचार्य स्वामी आशुतोषानन्द गिरी ने बेंगलुरु/ काशी में 'भारतीय संत महापरिषद' का लोकार्पण किया। स्वामी आशुतोषानंद धार्मिक प्रवचन देने और सनातन धर्म के प्रसार के लिए विभिन्न कार्यक्रमों में देश के अलग-अलग शहरों में जाते रहते हैं। बेंगलुरु में हुए इस कार्यक्रम का आयोजन कोणनकुंटे स्थित प्रेस्टीज सेंटर ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स में किया गया था। इस अवसर पर बड़ी संख्या में साधु-संत एवं अन्य विद्वान उपस्थित रहे। कार्यक्रम में भारतीय संस्कृति के संरक्षण और सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार को लेकर सभी संतों और अन्य महानुभावों ने अपने-अपने विचार रखे। इस अवसर पर महामंडलेश्वर स्वामी आशुतोषानन्द गिरी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा, "भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म की परंपरा का विकास और संरक्षण हम सभी का कर्तव्य है, जिसे अच्छी तरह निभाने के लिए पूरे संत समाज को एकजुट होकर चलना चाहिए। सभी संत अच्छी बातें तो करते हैं लेकिन उनके विचारों में समानता नहीं मिलती। हम सबको अपने मिलकर वैचारिक मतभेद दूर करने की आवश्यकता है, ताकि भारतीय संस्कृति की नींव और अधिक मजबूत हो सके।" महाराज जी ने 'भारतीय संत महापरिषद' को अपनी शुभकामनाएं देते हुए आशा जताई कि यह परिषद भारतीय संस्कृति के संरक्षण के लिए एक मिसाल के रूप में जानी जाएगी। उन्होंने दुनियाभर में सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए भी मजबूत रणनीति बनाने और उसके अनुसार आवश्यक कदम उठाने पर जोर दिया। गौरतलब है कि महामंडलेश्वर स्वामी आशुतोषानन्द गिरी का जन्म बिहार के विश्वास पुर नामक गांव के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। बचपन से ही उनकी रुचि संत सेवा और योग साधना में थी इसलिए काशी आकर उन्होंने चौदह वर्षों तक न्याय शास्त्र और वेदांत का अध्ययन किया गया। इस दौरान उन्हें कई बार शास्त्रार्थ प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक से भी सम्मानित किया गया। इतना ही नहीं, एक बार महाराज जी को भारत में भी प्रथम स्थान मिल चुका है। आशुतोषानन्द गिरी नेट (जे०आर०एफ) उत्तीर्ण करके कोलकाता के स्वामी विवेकानन्द विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर भी नियुक्त हुए लेकिन मन में संन्यास की ऐसी लगन थी कि मार्च 2014 में उन्होंने काशी स्थित कैलाश मठ में संत रूप धारण कर लिया। काशी के भेलूपुर गांव में स्थित कैलाश मठ पूरे भारत में प्रसिद्ध है। यहां भगवान शिव की पूजा उनके शिवलिंगम स्वरूप में की जाती है। तब से आजतक स्वामी आशुतोषानन्द गिरी पूरे भारत में श्री रामकथा, श्रीमद्भागवत कथा, देवी भागवत कथा, श्री ज्ञान यज्ञ और शिव महापुराण की कथा का वाचन करते हैं और भारत संस्कृति से लोगों को परिचित करवाने का काम करते हैं।
सनातन धर्म की महानता से दुनियाभर का परिचय करवाने के लिए महामंडलेश्वर आशुतोषानन्द गिरी जी महाराज ने कई किताबें भी लिखी हैं, जिनमें भजनामृत, आरती पुष्पांजलि तथा अनेक स्त्रोतों का संग्रह, वेदांत स्त्रोत्रावली, श्रीमद् भागवत सप्तपदी, भजन रसधारा और भक्तियोग
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