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06/09/2025

Medical News: मैड्रिड, स्पेन में पद्मश्री डॉ. बी. के. एस. संजय और डॉ. गौरव संजय ने 45वें सिकॉट वर्ल्ड कांग्रेस में प्रस्तुत किए शोधपत्र

देहरादून! प्रख्यात ऑर्थोपीडिक सर्जन पद्म श्री डॉ. बी. के. एस. संजय एवं डॉ. गौरव संजय ने 45वें सिकॉट ऑर्थोपीडिक वर्ल्ड कांग्रेस में अपने महत्वपूर्ण क्लीनिकल अध्ययन प्रस्तुत किए। यह प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन 3 से 5 सितम्बर 2025 तक मैड्रिड, स्पेन में आयोजित हुआ।


Medical News: मैड्रिड, स्पेन में  पद्मश्री डॉ. बी. के. एस. संजय और डॉ. गौरव संजय ने 45वें सिकॉट वर्ल्ड कांग्रेस में प्रस्तुत किए शोधपत्र
पद्म श्री डॉ. बी. के. एस. संजय


इस अवसर पर पिता-पुत्र की चिकित्सक जोड़ी ने उन गंभीर ऑर्थोपीडिक चुनौतियों पर प्रकाश डाला, जिनका सामना विकसित और विकासशील दोनों तरह की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं में किया जाता है। उन्होंने अपने व्यापक सर्जिकल अनुभव से प्राप्त निष्कर्ष सांझा करते हुए यह दर्शाया कि जटिल हड्डी-जोड़ संबंधी समस्याऐं—जैसे गंभीर घुटना फ्रैक्चर, सेरेब्रल पाल्सी से उत्पन्न स्थायी विकलांगता, टीबी एब्सेस और बढ़ती गठिया (Arthritis)—के लिए किफायती, नवाचारी और जीवन-परिवर्तनकारी समाधान संभव हैं।


अपने शोधपत्र में पद्म श्री डॉ. बी. के. एस. संजय ने बताया कि मीडियल ओपन वेज हाई टिबियल ऑस्टियोटॉमी एक तकनीकी रूप से सरल और आर्थिक रूप से अत्यंत किफायती प्रक्रिया है। यह टोटल नी रिप्लेसमेंट की तुलना में ओस्टियोआर्थराइटिस के रोगियों के लिए एक प्रभावी और व्यवहार्य विकल्प हो सकती है। विशेषकर एशियाई देशों में, जहाँ दैनिक जीवन की गतिविधियों में पालथी मारकर बैठना और स्क्वाटिंग आवश्यक होते हैं, यह तकनीक अत्यंत उपयोगी सिद्ध होती है।




वहीं, डॉ. गौरव संजय ने अपने शोधपत्र में बताया कि पर्क्यूटेनियस नेगेटिव सक्शन ड्रेनेज तकनीक एक सुरक्षित, सरल और प्रभावी विधि है, जो इंट्रा-आर्टिकुलर प्रॉक्सिमल टिबिया फ्रैक्चर के बाद होने वाली गंभीर जटिलता कंपार्टमेंट सिंड्रोम की आशंका को काफी हद तक कम करती है।


इसके अतिरिक्त, उन्होंने सेरेब्रल पाल्सी पर भी अपने अध्ययन निष्कर्ष साझा किए। उन्होंने बताया कि भारत जैसे विकासशील देशों में यह रोग सामाजिक-आर्थिक कारणों से अधिक पाया जाता है। जब डिफॉर्मिटी या कॉन्ट्रैक्चर रोगियों की दैनिक गतिविधियों में बाधा डालते हैं, तब शल्य-चिकित्सा आवश्यक हो जाती है। शोध से स्पष्ट हुआ कि युवा रोगियों में शल्य-चिकित्सा के परिणाम अधिक संतोषजनक रहे। निष्कर्षतः यह पाया गया कि जितनी जल्दी उपचार किया जाए, उतने ही बेहतर परिणाम सामने आते हैं

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